नज़राना इश्क़ का (भाग : 25)
फरी और रजनी अब भी एक दूसरे के गले लगी हुई थी, वक़्त जैसे थम सा गया था। फरी, रजनी के ममतामयी आलिंगन से सबकुछ भूल सी गई थी, रजनी भी ऐसा महसूस कर रही थी मानो सालों पुराना कोई जख्म भर से गया हो। दोनो की आँखों में अश्रु तो थे मगर उनमें विषाद का नाम न था, उनके चेहरे पर शोक के भाव न थे, आँखों में अपार हर्ष की लहर दौड़ रही थी, दोनो दुनिया से बेखबर एक दूसरे के गले से लगी हुई थी।
"मुझे तो लगा था ये भरत मिलाप कब का हो चुका होगा…!" विक्रम कमरे में प्रवेश करते हुए बोला, उसने अपने हाथों में एक थाल पकड़ा हुआ था। उसे देखकर दोनो हड़बड़ाकर एक दूसरे से अलग हो गईं। रजनी जी विक्रम को एक नजर भर के घूरा। "ऊँ…! किसी को सड़ा करेला खाना है… आई मीन मैंने सोचा तुम अब तक सोई नहीं होगी तो….!" विक्रम ने कंधे उचकाते हुए कहा।
"विक्की…!"
"भाई…!" दोनो ने एक साथ विक्रम की ओर देखते हुए घूरकर कहा।
"उसे सड़ा करेला नहीं, फ्राइड भुजिया कहते हैं!" रजनी ने बात पूरी की।
"सॉरी मम्मा..! ये इतना सड़ा लगता है कि मुझे इसका नाम सड़ा करेला ही लगा..!" विक्रम नजर छिपाते हुए बोला।
"और आप ये मुझे खिलाने के लिए ले आये भाई…? कितने गंदे हो आप..!" फरी प्लेट से ढक्कन हटाते हुए कहा।
"अरे नहीं..! तुम्हारा मूड सड़ा सा था न तो इसे ले आया…!" विक्रम ने अपने कंधे उचकाए।
"तो आप ये ले आये…!" फरी ने नाक सिकोड़कर पूछा।
"ये गधा है! तुम चखकर तो देखो…, करेले को सही से फ्राई किया जाए तो उससे ज्यादा टेस्टी और मूड रिफ्रेशर कुछ नहीं..!" रजनी जी ने विक्रम के हाथ से प्लेट उठाते हुए कहा, और एक चम्मच फरी को खिलाया।
"वाओ.. सो टेस्टी!" फरी अपने होठों पर लगे स्लाइस को अंगूठे से पोंछते हुए बोली।
"आखिर इसे बनाया किसने है…!" विक्रम बड़े गर्व मुस्कुराते हुए बोला। रजनी उसे घूरने लगीं।
"वाह भाई..! जब मैं बहुत बड़ी बन जाऊंगी न, तो आपको अपना पर्सनल कूक रखूंगी!" फरी ने दाँत दिखा कर हँसते हुए कहा।
"हाँ, तुझे तो ताड़ से भी बड़ा होना है ना…!" विक्रम ने मुँह बिचकाया।
"भाई…! वो वाला बड़ा नहीं!" फरी विक्रम के पीछे भागी।
"अरे रुक जाओ कल की पूरी तैयारी भी तुम दोनों को ही करनी है, वैष्णव भी आता ही होगा फिर तीनो मिलकर सारा सामान लेते आना!" रजनी ने दोनों को चिल्लाते हुए कहा।
"हां ठीक है मम्मी..!" विक्रम ने जवाब में हाथ हिलाते हुए बोला और सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए बाहर गार्डन की ओर भागा।
"रुक जाओ भाई…!" फरी उसके पीछे और तेजी से भागी। दोनो भागते हुए बाहर लान में आकर रुके, दोनों ही जोर जोर से हांफ रहे थे, तभी वहां वैष्णव की कार आकर रुकी। वह इन दोनों को गौर से देखा और फिर वापिस कार में बैठ गया।
"चलो…! अभी मार्किट भी जाना है न?" कार दुबारा स्टार्ट कर वैष्णव उन दोनों को बुलाया, दोनों वापिस घर में गए और दो मिनट बाद ही वैष्णव के साथ कार में बैठ गए।
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इधर जाह्नवी और निमय की तैयारी लगभग पूरी हो चुकी थी, वे दोनों अपने कमरे में अपने मम्मी पापा के शादी के एल्बम को देख रहे थे।
"देखो मिसेज़ जानकी और मिस्टर श्रीराम को… ऐसे लग रहा है मानों ये दोनों एक दूसरे के लिए ही बने हुए हो…!" जाह्नवी अपने मम्मी पापा के फेरों के समय की तस्वीर देखते हुए बोली।
"हाँ हाँ.. पर नाम मत ले चुड़ैल! माई बाप है वो हमारे, सुन लिए तो वारे न्यारे हो जाएंगे…!" निमय उसके कान में हिदायत देते हुए फुसफुसाया।
"हाँ पर बने तो एक दूसरे के लिए ही है ना…!" फरी अपने दोनों हाथ लहराते हुए बोली।
"ये भी ठीक है गुरु! तुम अपनी बात मनवा लो, कोल्हू का बैल तो मुझ मासूम को बनना पड़ता है ना!" निमय ने मुँह बनाते हुए कहा।
"क्या कहा? तू और मासूम… छी छी.. ये सुनाने से पहले उठा क्यों नहीं लिया भगवान… अरे मुझे नहीं इसकी काली जुबान को.. तू और मासूम..!" जाह्नवी अल्बम बन्द कर, उसके सिर पर मारते हुए बोली। इसके साथ ही वह अल्बम बिस्तर पर फेंक तेजी से बाहर की ओर भागी।
"रुक जा बंदरिया! तेरी तो…!" निमय उसके पीछे भागा।
"तू होगा बंदर…!" जाह्नवी ने दरवाजे पर रखे उसे चप्पल को उसकी ओर उछालते हुए कहा।
"अरे तुम दोनों फिर शुरू हो गए, आज तो शांत हो जाओ… बड़े हो गए अब तुम दोनों..!" मिसेज शर्मा ने जाह्नवी को भागता हुए देखकर कहा।
"मैंने कुछ नहीं कहा मम्मी! सारी उस गधे की गलती है!" जाह्नवी अपने मम्मी के पीछे छिपते हुए बोली।
"मैंने कुछ नहीं किया मम्मी! ये बंदरिया हमेशा ही झूठ बोलती है।" निमय भी मिसेज़ शर्मा के पास आ गया, वह जाह्नवी को पकड़ने बढ़ा।
"नहीं मम्मी! ये कह रहा था तुमने पापा को कोल्हू का बैल बना दिया है।" जाह्नवी उसकी पकड़ से बचती हुई अपनी माँ के आगे आकर खड़ा हो गयी, निमय अब पीछे की ओर था।
"शुभ शुभ बोलो बच्चों! ऐसी बातें कौन करता है भला!"
मिसेज शर्मा ने हैरानी जताते हुए मुँह पर हाथ रख एक किनारे होते हुए कहा।
"ये सफेद झूठ बोल रही है मम्मी!" निमय वही सिर झुकाकर खड़ा हो गया।
"और तेरे झूठ में काला कोयला मिला हुआ है।" जाह्नवी मुँह बनाते हुए वहां से चल दी।
"चुप हो जाओ तुम दोनों। मस्ती मजाक हमेशा एक दायरे में रहकर किया करो, एक सीमा में रहकर, हां हँसी मजाक अच्छा लगता है लेकिन सीमा के बाहर ये भद्दा लगने लगता है, इसके परिणाम अच्छे नहीं होते, इसलिए ये बात गांठ बांध कर रख लो, मजाक उतना ही करोगे जितना जायज हो, करने लायक हो!" मिसेज शर्मा ने दोनों को बड़े प्यार से समझाते हुए कहा। दोनों ही मम्मी की बात सुनकर वहां से वापिस कमरे में चले गए।
"देख तेरी वजह से फिर ज्ञान का ओवरडोज लेना पड़ा!" जाह्नवी कुर्सी पर फैलकर बैठते हुए बोली।
"मेरी वजह से…!" निमय उसे घूरने लगा।
"तो क्या…..!" जाह्नवी ने बेबाकी से जवाब दिया।
"वाह…! बहुत सही, यही करना बाकी है अब..!" निमय ने मुँह बनाते हुए ताली बजाकर कहा।
"हां.. तो क्या करूँ..! भाभी तो तू लाने से रहा, अब कुछ तो करना पड़ेगा न..!" फरी ने कंधे उचकाकर कहा।
"यही तो बचा है अब ज़िंदगी में…!" निमय मुँह बनाकर हाथ पसारा!
"तो और क्या बचा है…! कोई है क्या…?" जाह्नवी निमय को छेड़ते हुए शरारती लहजें में बोली।
"फरी…… हूं… फरी या विक्रम का कॉल आया था क्या?" निमय अपने लड़खड़ाते शब्दों को संतुलित करने का प्रयास करता हुआ बोला।
"नहीं..!" जाह्नवी उसके चेहरे को काफी देर तक घूरने के बाद बोली, अब तक तो नहीं पर अब हम ही कर लेते हैं!" कहते हुए जाह्नवी फरी को कॉल मिलाने लगी, मगर एक रिंग जाते ही कॉल काट दी।
"अरे सुन ना! मेरी मतलब अभी अभी दोस्ती हुई है तो कुछ समझ नहीं आ रहा क्या बोलूं… मतलब थोड़ा अजीब लग रहा है, तू कर ले न!" जाह्नवी निमय के हाथ पर फ़ोन से धीमे से ठकठकाते हुए धीरे से बोली। इससे पहले निमय कोई जवाब देता फरी का कॉल आ गया।
"उठाओ…!" निमय धीरे से बोला।
"अरे तू उठा…!"
"कितना डरती है डरपोक…!"
"तू ही उठा न…!"
दोनो खुसपुसा रहे थे कि इतनी देर में कॉल कट गया, निमय ने जाह्नवी के मोबाईल की तरफ हाथ बढ़ाया तभी उसका मोबाइल रिंग करने लगा।
"हेलो…!" निमय कॉल रिसीव करता हुआ बोला।
"मैं विक्रम बोल रहा हूँ!" उधर से आवाज आई।
"हाँ..! कहाँ हो तुम दोनों?" निमय पूछा।
"मार्किट आये हैं, तुम बताओ..!" विक्रम ने कहा।
"अभी तो घर ही हैं, कही मिल सकते हो क्या, मतलब हम चारों…!" निमय ने कहा, ये कहते समय उसके आँखों की चमक और बढ़ गयी थी।
"हाँ पर अभी भैया के साथ हूँ, शाम को मिलते हैं!" विक्रम ने कहा।
"हाँ ठीक है कॉल करके बताना!" कहते हुए निमय ने फोन रख दिया।
"तुम सीधा विक्रम को कॉल नहीं कर सकते थे मुझे फरी को कॉल करने बोला।" जाह्नवी उसपर बरसते हुए बोली।
"वो… वो मैं उसका नम्बर सेव करना भूल गया था!" निमय हड़बड़ाते हुए बोला।
"वाह… बहुत सही!" निमय को चिढ़ाते हुए जाह्नवी ताली पीटने लगी।
"चुप कर गधी..! अभी वो मार्किट है घर जाकर कॉल करेगा!" निमय ने बात बदलने की गरज से कहा।
"हां तो बढ़िया है ना..! वैसे कहा जायेगा .. यहां की तो हर झील, हर मंदिर हर जगह घूम आया है तू…!" जाह्नवी ने जानने की गरज से मुँह बनाकर पूछा।
"कही तो चलेंगे ही, अपने उदयपुर में खूबसूरत जगहों की कोई कमी थोड़े है…!" निमय गर्व से कंधा उचकाते हुए कहा। "वैसे भी कौन सा बसने जाना है, एक दो घण्टे में वापिस आ ही जाना है।"
"ये भी ठीक है!" जाह्नवी ने निमय की नकल करते हुए कहा।
"अब बस उसका कॉल आये तो न… तब तक कोई प्यारी सी जगह ढूंढ के रख…!" निमय ने जाह्नवी को उसका फोन पकड़ाते हुए कहा।
"हुंह…!" जाह्नवी ने मुँह बनाकर उसकी ओर देखा, प्रत्युत्तर में निमय दांत दिखाकर हँस दिया।
क्रमशः...
shweta soni
29-Jul-2022 11:40 PM
Nice 👍
Reply
🤫
28-Feb-2022 12:38 AM
🤭🤭🤭🤭🤭🤭🤭 बहुत खूब
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मनोज कुमार "MJ"
28-Feb-2022 01:44 PM
Thank you
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Seema Priyadarshini sahay
02-Feb-2022 05:41 PM
बहुत बढ़िया
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